उत्तराखंड में पहाड़ से मैदान तक बरपा कुदरत का कहर; धराली, थराली और दून में दिखा खौफनाक मंजर
देवभूमि उत्तराखंड के सामने साल 2025 में कई घटनाएं अग्निपरीक्षा की तरह सामने आईं। पहाड़ से मैदान तक कुदरत का कहर बरपा। धराली, थराली और फिर देहरादून में आसमानी आफत ने कई जिंदगियां लील ली। जानते हैं ऐसी ही घटनाएं जिन्होंने न केवल हर किसी को झकझोरा बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी सुर्खियों में छाई रहीं।
उत्तरकाशी में बीते पांच अगस्त को धराली और हर्षिल की खीरगंगा और तेलगाड मे आई आपदा में 60 से अधिक लोगों और 9 जवान मलबे में दब गए थे। वहीं धराली का पूरा बाजार करीब 25 से 30 फीट मलबे में दबकर जमींदोज हो गया था। दूसरी ओर यमुनोत्री घाटी में सिलाई बैंड में बादल फटने के कारण उसमे सात मजदूर बह गए थे। उसके बाद कुपड़ाखड्ड के उफान पर आने के कारण यमुना नदी में झील बनने के कारण स्यानाचट्टी कस्बे के अस्तित्व पर खतरा मंडरा गया था।
चमोली में हिमस्खलन फिर थराली में आपदा
साल के शुरुआत में ही 28 फरवरी को माणा कैंप के पास भारी हिमस्खलन हुआ। जिसमें 55 मजदूर बर्फ के जलजले में दब गए थे। इनमें से आठ श्रमिकों की मौत हो गई थी। इसके बाद थराली आपदा ने लोगों को झकझोर कर रख दिया। 22 अगस्त की रात को इस प्राकृतिक आपदा से थराली के कोटडीप, राड़ीबगड़, अपर बाजार, कुलसारी, चेपड़ों, सगवाड़ा समेत कई इलाकों में व्यापक नुकसान हुआ। स्थिति यह रही कि तहसील परिसर के साथ ही दुकानों और मकानों में मलबा घुस गया तथा कई वाहन मलबे में दब गए। सबसे अधिक तबाही चेपड़ों में हुई। यहां एक बुजुर्ग मलबे में दब गए, सगवाड़ा गांव में भी 20 साल की युवती मलबे में दब गई थी। लोग इस आपदा से संभले भी नहीं थे कि सितंबर माह में नंदानगर की आपदा तबाही लेकर आई। 17 सितंबर की रात को अतिवृष्टि के दौरान पहाड़ियों के ऊपर बादल फटने से बरसाती गदेरों ने कुंतरी और धुर्मा गांव को तबाह कर दिया। सेरा गांव में 8 मकानें बह गई। इस क्षेत्र में एक माह तक अफरा-तफरी का माहौल रहा। फाली गांव में पांच लोग अकाल मौत का शिकार हो गए थे।
देहरादून ने पहली बार देखी ऐसी आपदा
इस साल मानसून की बारिश कई इलाकों में तबाही भी लेकर आई। वहीं, बीती 15-16 सितंबर की रात दून में हुई बारिश से कई इलाकों में आपदा आई तो लोगों को साल 2013 की केदारनाथ आपदा की याद आ गई। इसके साथ ही दून की बारिश ने 101 साल बाद बारिश का नया रिकॉर्ड भी बनाया। अकेले देहरादून में ऐसी आपदा आई कि हर कोई यह सोचने को मजबूर हो गया कि आखिर इतनी बारिश कैसे हुई। सहस्रधारा, मालदेवता, मसूरी रोड में समेत कई इलाकों में आई आपदा के साथ नंदा की चौकी का पुल भी नदी में बह गया। जिसके चलते लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा। जबकि प्रेमनगर नंदा की चौकी का पुल तो अभी भी क्षतिग्रस्त होने की वजह से लोगों को वैकल्पिक मार्ग से गुजरना पड़ रहा है। इन दो दिनों में अकेले सहस्रधारा में 264.0 एमएम बारिश हुई, जो सामान्य से बहुत अधिक थी। इससे पहले इतनी बारिश साल 1924 की तीन सितंबर को 212.6 एमएम बारिश रिकॉर्ड की गई थी, जो अब तक का ऑलटाइम रिकॉर्ड था।
दूसरे नंबर पर सबसे अधिक बारिश मालदेवता में 149.0 एमएम बारिश दर्ज की गई। कालसी में 119.5, नैनीताल में 105.0 एमएम बारिश हुई। प्रदेशभर की बात करें तो देहरादून में सबसे अधिक बारिश हुई। यहां 66.7 एमएम बारिश दर्ज की गई, जो सामान्य से 1136 फीसदी अधिक थी। एक ओर मूसलाधार बारिश ने सहस्त्रधारा में तबाही मचाई तो वहीं, मालदेवता के केशरवाला में सड़क का करीब 100 मीटर का हिस्सा बहने से तकरीबन 17 गांवों का संपर्क टूट गया था। सहस्त्रधारा में लोगों के घरों, रेस्टोरेंट और होटल में पानी भरने के साथ ही कई मकान जमींदोज हो गए थे। इतना ही नहीं इलाके के पुल, रास्ते और जगह-जगह हुआ भूस्खलन आपदा की तबाही का मंजर बता रहा था।
