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अग्निपथ योजना के शुरू होने के बाद भर्ती की पुरानी प्रक्रिया न रोकी जाए

ARMY

केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना पर पूर्व सैनिकों ने कहा कि सेना में भर्ती के लिए जिन अभ्यर्थियों की शारीरिक परीक्षा हो गई, उनकी प्रक्रिया को न रोका जाए। उन्होंने अग्निपथ योजना में ऐसे युवाओं को शारीरिक परीक्षा से मुक्त रखने और केवल लिखित परीक्षा में शामिल करने का सुझाव दिया।

अग्निपथ योजना को लेकर ऐसे कुछ और महत्वपूर्ण सुझाव पूर्व सैनिकों की ओर से प्रदेश सरकार को दिए गए। सोमवार को मुख्यमंत्री कैंप कार्यालय स्थित मुख्य सेवक सदन में पूर्व सैनिकों से संवाद किया। संवाद कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने पूर्व सैनिकों से योजना के बारे में सुझाव मांगे।

पुरानी प्रक्रिया बंद न हो

कुछ पूर्व सैनिकों का मानना था कि अग्निपथ योजना के शुरू होने के बाद भर्ती की पुरानी प्रक्रिया न रोकी जाए। जब नई योजना पूरी तरह से व्यवहार में आ जाए और इसे लागू करने में रक्षा मंत्रालय सहज हो, तब पुरानी प्रक्रिया को बंद कर दिया जाए।

योजना की अवधि बढ़नी चाहिए 

कुछ पूर्व सैनिकों ने अग्निपथ योजना में भर्ती होने वाले अग्निवीरों की सेवा अवधि चार साल को कम माना है। उनका सुझाव है कि इसकी सेवा अवधि बढ़नी चाहिए। कुछ ने इसे चार से बढ़ाकर 10 साल करने का सुझाव दिया।

वेबसाइट पर हो पूरी जानकारी

कुछ पूर्व सैनिकों कहना था कि अग्निपथ योजना की स्पष्ट और विस्तृत जानकारी न होने की वजह से भी भ्रम की स्थिति बनी है। इसलिए रक्षा मंत्रालय को इस योजना के अलावा केंद्रीय सुरक्षा बलों में आरक्षण व अन्य सुविधाओं के संबंध में अधिसूचित ब्योरा वेबसाइट पर उपलब्ध कराना चाहिए।

अच्छा संदेश जाना था, गलत जा रहा

संवाद में कुछ पूर्व सैनिकों का कहना था कि अग्निपथ योजना के बारे में अच्छा संदेश जाना चाहिए था, लेकिन अचानक लाई गई इस योजना को लेकर ऐसा संदेश गया कि मानो सेना में भर्तियां बंद हो गईं, जबकि भर्तियां खुली हैं। इसे सकारात्मक ढंग से पेश किया जाए।

उत्तराखंड में विरोध नही

संवाद कार्यक्रम में बताया गया कि अग्निपथ योजना  का उत्तराखंड के युवाओं में विरोध नहीं है। कुछ पूर्व सैनिकों ने बताया कि राजनीतिक दृष्टि से युवाओं को गुमराह करने की कोशिश की गई, लेकिन युवावर्ग समझ चुके हैं। पूर्व सैनिकों ने कहा कि 25 प्रतिशत जो सर्वश्रेष्ठ अग्निवीर होंगे, वे सेना में बने रहेंगे। इनमें उत्तराखंड युवाओं की संख्या ज्यादा हो सकती है, क्योंकि यहां के जवानों में ज्यादा सामार्थ्य और क्षमता होती है।

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