अमेरिका ने भारत को मुश्किल में डाला, जानें मोदी सरकार के समक्ष क्या है
नई दिल्ली। रूस और यूक्रेन जंग से उपजे हालात के बाद भारत की स्थिति उहापोह की बन गई है। भारतीय विदेश नीति के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। दरअसल, रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद मास्को और अमेरिका के बीच सामंजस्य बनाए रखना भारतीय विदेश नीति के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। आइए जानते हैं कि भारतीय विदेश नीति के समक्ष यह चुनौती क्यों है। आखिर रूस और यूक्रेन जंग से भारत का क्या लेना देना है। रूस और अमेरिका भारत के लिए क्यों अहम हैं। इन सब मामलों में विशेषज्ञों की क्या राय है।
रूस और यूक्रेन जंग में भारत के स्टैंड को जायज मानते हैं। उनका कहना है कि अभी तक भारत सरकार रूस और अमेरिका के साथ संबंधों में संतुलन बनाने में सफल रहा है। हालांकि, पंत का कहना है कि भारत के समक्ष दोनों देशों के साथ संतुलन बनाए रखने की चुनौती अभी भी बरकरार है। उनका मानना है कि आने वाले समय में यह चुनौती और बढ़ेगी। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत किस रणनीति के साथ आगे अपने संबंधों का निर्वाह करता है।
रूस यूक्रेन जंग में अमेरिका ने जिस तरह से भारत पर दबाव बनाया है, उससे नई दिल्ली की चुनौती और बढ़ गई है। बता दें कि बाइडन प्रशासन ने भारत पर रूस के खिलाफ अपनी स्थिति को स्पष्ट करने के लिए दबाव बनाया है। गुरुवार को क्वाड देशों की बैठक के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यह कहा था कि रूस के यूक्रेन पर हमले को लेकर कोई बहाना या टालमटोल नहीं चलेगा। बाइडन प्रशासन का यह इशारा कहीं न कहीं भारत के लिए भी था, क्योंकि क्वाड देशों में जापान और आस्ट्रेलिया खुलकर रूस की निंदा कर रहे हैं। दोनों देश इस मामले में अमेरिका के साथ खड़े हैं।
अमेरिकी सीनेट में भारत के रुख पर चर्चा होना एक गंभीर मामला है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने भले ही मतदान में हिस्सा नहीं लिया हो, लेकिन उसने युद्ध को किसी भी रूप में जायज नहीं ठहराया। भारत ने साफ किया था कि वह किसी भी हाल में युद्ध के पक्ष में नहीं है। सुरक्षा परिषद में मतदान से खुद को दूर रखने के बावजूद भारत ने यूक्रेन में मानवीय सहायता पहुंचाने की पहल की है। भारत ने खुद को संयुक्त राष्ट्र के उस चार्टर से भी दूर नहीं रखा है, जिसमें रूस से संयम और युद्ध समाप्त करने की अपील की गई है। भारत भी समस्या का हल बातचीत के जरिए ही चाहता है।