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उत्‍तराखंड की ये सौगात, तस्‍वीरों में देखें कैसे पीएम मोदी ने बनाया ट्रेंडिंग

26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तराखंडी टोपी पहनी थी जिस पर राज्य के प्रसिद्ध फूल ब्रह्मकमल का चिह्न भी अंकित था।

देहरादून। उत्तराखंड की संस्कृति को दर्शाती ब्रह्मकमल टोपी इन दिनों आम आदमी से लेकर खास व्यक्तियों के सिर पर सजी नजर आ रही है। राजनीतिक मैदान से लेकर सामाजिक कार्यक्रमों और शादी समारोह तक हर जगह उत्तराखंड की ब्रह्मकमल टोपी का जादू छाया है। वर्तमान में स्थिति यह है कि देहरादून के स्टोरों में आने के कुछ ही घंटे में ये टोपियां खत्म हो जाती हैं। युवा, बुजुर्ग और महिलाएं हर वर्ग में इस टोपी का क्रेज दिख रहा है। टोपी को डिजाइन देने वाले कलाकारों का कहना है कि यदि मांग इसी तरह बढ़ी तो इससे पारंपरिक रूप से जुड़े लोग को आर्थिक लाभ मिलेगा और संस्कृति का प्रचार प्रसार होगा।

26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तराखंडी टोपी पहनी थी, जिस पर राज्य के प्रसिद्ध फूल ब्रह्मकमल का चिह्न भी अंकित था। उन्होंने इसी ब्रह्मकमल टोपी को पहनकर देशवासियों को संबोधित किया था। उसके बाद से यह टोपी उत्तराखंड में ट्रेंड बन गई है। विधानसभा चुनाव से लेकर राजनीतिक कार्यक्रम और सामाजिक संगठन से जुड़े लोग इस टोपी पहनने में रुचि ले रहे हैं।

देहरादून में बल्लुपुर चौक स्थित पहाड़ी स्टोर के संचालक रमन शैली का कहना है कि विभिन्न प्रकार की पहाड़ी टोपी गोपेश्वर, उत्तरकाशी, और मसूरी से बनकर आती हैं। लेकिन ब्रह्मकमल टोपी मसूरी में ही बनाई जाती है। उन्होंने बताया कि पहाड़ी स्टोर से हर सप्ताह मसूरी में 200 से 300 टोपी के आर्डर दिए जाते हैं, लेकिन जैसे ही टोपी स्टोर तक पहुंचती है, एक घंटे के भीतर सभी खत्म हो जाती हैं। एडवांस बुकिंग के कुछ ही घंटे बाद ग्राहक टोपी पहुंचने या न पहुंचने के लिए फोन करते हैं, इसलिए फिलहाल एडवांस बुकिंग नहीं ली जा रही।

रमन शैली ने बताया कि काली, नीली, पीली, मैरून, हल्के हरे रंग में ब्रह्मकमल टोपी उपलब्ध हैं, लेकिन इनमें से मैरून टोपी की मांग ज्यादा है। वुलन फैब्रिक व काटन में उपलब्ध इन टोपी की कीमत 350 से लेकर 475 रुपये तक है। जबकि सादी पहाड़ी टोपी की कीमत 200 रुपये है। पलटन बाजार की कई दुकानों पर भी उत्तराखंड की ब्रह्मकमल टोपी 150 रुपये तक बिक रही है। टोपी को डिजाइन देने वाले हिमालयन सेंटर के संचालक समीर शुक्ला का कहना है कि कई दुकानों पर ब्रह्मकमल के नाम से टोपी बिक रही है। लेकिन इसमें वह कपड़ा और क्वालिटी नहीं मिल पाती। अच्छी बात यह है कि किसी न किसी रूप में उत्तराखंड की संस्कृति को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।

गणतंत्र दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी की ब्रह्मकमल टोपी को डिजाइन देने वाले मसूरी निवासी सोहम हिमालयन सेंटर के संचालक समीर शुक्ला बताते हैं कि हर क्षेत्र में अलग अलग टोपियां पहनी जा रही हैं, ऐसे में उन्हें ख्याल आया कि एक ऐसी टोपी डिजाइन की जाए जिससे राज्य की पहचान है। वोकल फार लोकल के तहत यह मसूरी में ब्रह्मकमल टोपियां बनाने का कार्य चल रहा है। जिसमें सिलाई के लिए पारंपरिक टेलर, हेंडवर्क के लिए महिलाओं समेत कुल 20 लोग को जोड़ा गया है। मसूरी से ही उत्तराखंड के विभिन्न शहरों के अलावा उत्तर प्रदेश, दिल्ली में रहने वाले उत्तराखंडवासी इस टोपी की मांग करने लगे हैं।

सोहम हिमालयन सेंटर के संचालक समीर शुक्ला बताते हैं कि कोरोनाकाल में तकरीबन दो हजार टोपियां बनाई गई थी। जिसका स्टाक खत्म हो चुका है। इनकी मांग देहरादून, गोपेश्वर, श्रीनगर, उत्तरकाशी, हल्द्वानी, चंपावत आदि शहरों से आ रही हैं। सबसे ज्यादा मांग देहरादून से है। ऐसे में आगे प्रोडक्शन बढ़ाएंगे। विधानसभा के चुनाव में काफी मांग रही। टोपियां हर महीने कितनी बिक रही है इसकी स्पष्ट स्थिति मार्च में चुनाव परिणाम के बाद ही पता चल सकेगा।

उत्तराखंड की ब्रह्मकमल टोपी पहनकर किसी भी आयोजन में जाने के दौरान अधिकांश लोग इंटरनेट मीडिया पर इसे शेयर कर उत्तराखंड की संस्कृति को पहचान दिला रहे हैं। लोकगायक से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता और युवा इंटरनेट मीडिया पर ब्रह्मकमल टोपी के साथ नजर आ रहे हैं।

 

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