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देहरादून के बासमती के चर्चे

Dehradun:  अपनी खुशबू और स्वाद के चलते बासमती चावल की इस प्रजाति ने देहरादून को देश-विदेश में अलग पहचान दिलाई। तेजी से हुए शहरीकरण, सही मार्केटिंग न होने और अन्य प्रजातियों के विकसित होने के चलते धीरे धीरे यह प्रजाति विलुप्त हो गई। आज ढूंढने से भी इस बासमती का बीज नहीं मिल रहा है।

पछवादून क्षेत्र के सोरना, तिलवाड़ी, दुधई, बिरसनी और सेवला माजरा क्षेत्र में खेत देहरादून की बासमती से लहलहाया करते थे। आज से करीब 10 वर्ष पूर्व तक क्षेत्र में करीब 4-5 हजार हेक्टेयर में इसकी इसकी खेती हुआ करती थी। स्वाद और खुशबू के चलते यह ग्राहकों की पहली पसंद हुआ करती थी। लेकिन धान की अन्य प्रजातियों के विकसित होने के साथ ही देहरादून के पुराने बासमती की प्रजाति गुम होती चली गई है। धीरे धीरे किसानों ने इसके बीज को संरक्षित करना बंद कर दिया। जिस कारण यह धीरे धीरे विलुप्त हो गई। रुद्रपुर के किसान अंबादत्त जोशी बताते हैं कि 10 साल पहले तक वह देसी बासमती की खेती किया करते थे। इस प्रजाति की लंबाई अधिक होती थी, जिस कारण बारिश होने और तेज हवाएं चलने पर गिर जाती थी। इससे काश्तकार को नुकसान होता था। जैविक बासमती की प्रजाति कस्तूरी, सरबती के आने पर धीरे-धीरे किसानों का रुझान इस ओर बढ़ गया। सोरना के किसान चंद्रपाल शर्मा बताते हैं कि वह करीब पांच बीघा में जैविक बासमती तारावणी का उत्पादन कर रहे हैं। बीते आठ-दस सालों में देसी बासमती का बीज विलुप्त ही हो गया।

देहरादून के पुराने बासमती का बीज किसान स्वयं संरक्षित करते थे। जलवायु परिवर्तन और फसल की लंबाई अधिक होने की वजह से किसानों का धीरे धीरे नई प्रजातियों की ओर रुझान बढ़ गया और देहरादून की बासमती विलुप्त होती चली गई।
– आरके जोशी, विकासखंड प्रभारी, विकासनगर कृषि विभाग

दून बासमती टाइप-3 थी। प्रति हेक्टेयर इसकी पैदावार कम होने और तेज हवा में फसल गिरने से नुकसान होता था। अब इसकी जगह कस्तूरी व पूसा बासमती ने ले ली है। दून बासमती के बीज पर शोध करने की आवश्यकता है।
– डॉ. सीएमएस नेगी, परियोजना अधिकारी, तराई बीज विकास निगम।

शहरीकरण के चलते दून बासमती का क्षेत्रफल लगातार घटा है। किसानों ने भी टाइप थ्री बासमती के बीज का उत्पादन छोड़ दिया है। इस कारण दून बासमती टाइप थ्री का बीज नहीं मिल रहा है। किसान हाईब्रीड बासमती की खेती कर रहे हैं।
– केसी पाठक, प्रभारी निदेशक कृषि विभाग

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