कायिक वाचिक और मानसिक तापों से मुक्ति दिलाने वाली मां गंगा शिव की जटाओं से निकलकर गंगा दशहरे के दिन हरिद्वार के मैदान में पहुंची थी। आगे-आगे शंख बजाते अयोध्या के महा तपस्वी राजा भगीरथ के पीछे-पीछे चलते हुए गंगा ने शिवलोक से मायापुरी तक की यात्रा 33 दिन में पूरी की।
यहां से गंगासागर तक तभी से समस्त तीर्थों पर ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन लाखों श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं। अनेक तीर्थ नगरों में मेले भी भरते हैं। भारतीय संस्कृति में 10 का अंक व्यापक महत्व रखता है। दशहरे के दिन दस योग पड़ते हैं और गंगास्नान से तीन कायिक, चार वाचिक और तीन मानसिक पाप नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों के व्याख्याता पंडित प्रमोद शुक्ला बताते हैं कि इस बार गंगा दशहरे पर चार महायोग भी पड़ रहे हैं।
ब्रह्मलोक में विष्णु चरणोदक के रूप में बहने वाली मां गंगा राजा सगर के पुत्रों की राख बहाने के प्रयोजन से भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन कैलाश पर विराजमान शिव के जटाजूटों में समा गई थी। राजा भगीरथ ने फिर तपस्या की और गंगा को शिव की जटाओं से बहाकर धरती पर ले आए।
स्कंद पुराण के केदारखंड के अनुसार कलयुग और द्वापर युग से पहले यह आगमन त्रेतायुग में करीब नौ लाख वर्ष पूर्व हुआ था। राजा भगीरथ ब्रह्मलोक में बहने वाली गंगा को धरतीवासियों के कल्याणार्थ त्रेता युग के अंत में धरती पर लाए थे। तब तक भगवान राम का अवतरण नहीं हुआ था।