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मसूरी घूमने और माल रोड में रिक्शा का आनंद लेना अंग्रेजों के दौर में भी शान माना जाता

मसूरी : मसूरी अपने जन्मकाल से ही देशी-विदेशी लोगों की पसंदीदा जगह रही है। मसूरी घूमने और माल रोड में रिक्शा का आनंद लेना अंग्रेजों के दौर में भी शान माना जाता था। अंग्रेज और तत्कालीन राजे-रजवाड़े हाथ रिक्शा पर बैठकर माल रोड की सैर करते थे। लेकिन समय के साथ अब मसूरी में हाथ और पैडल रिक्शा की जगह ई-रिक्शा संचालन की मांग तेजी से उठने लगी है।

मसूरी में रिक्शा संचालन का लंबा इतिहास रहा है। शहर में हाथ रिक्शा का प्रचलन 1850 से माना जाता है। दरअसल घोड़ा बग्घी मसूरी में सब जगह नहीं जा सकती थी, इसलिए अंग्रेज माल रोड या अन्य स्थानों स्थानों पर घूमने के लिए हाथ रिक्शा में बैठकर जाते थे। जिसको चार लोग खींचते थे। मजदूर संघ के तत्कालीन सचिव रहे देवी गोदियाल ने बताया कि हाथ रिक्शा खींचता काफी मेहनत का काम होता था।

1995 में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के तत्कालीन उप निदेशक हर्षमंदर ने मजदूर संघ के सहयोग से हाथ रिक्शा संचालन बंद करवा दिया। उस दौरान हाथ रिक्शा संचालन में करीब 428 लोग जुड़े थे। अकादमी के सहयोग से सरकार ने आठ-आठ हजार रुपये प्रति रिक्शा चालक को साइकिल यानी पैडल रिक्शा खरीदने के लिए दिए।

Mussoorie rickshaw operation Interesting History and now demand of E rickshaw Story

तभी से साइकिल रिक्शा संचालन शुरू हुआ और जो अभी तक चल रहा है। समय के साथ अब रिक्शा संचालक ई-रिक्शा संचालन की मांग उठाने लगे हैं। इसके लिए स्थानीय प्रशासन से अनुमति और सरकार से आर्थिक सहयोग भी चाहते हैं। इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी बताते हैं 1862-63 में मसूरी का सबसे पहला रिक्शा चार्लिबिल की स्वामिनी लेडी डिक लाई थीं। 1875 के बाद हैप्पी वैली के अंग्रेज उद्योगपति मर्चेंट ने चार्लिबिल में रिक्शा बनाने का कारखाना लगा दिया था। 1901 में मर्चेंट ने रबड़ का शानदार सिंगल रिक्शा तैयार कर दिया था और मसूरी में सिंगल और डबल रिक्शा चलने लगे।
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अंग्रेजों के अलावा मसूरी में रहने वाले राजा-रजवाड़े, नबाब, जागीरदारों के अपने रिक्शे और वेतनभोगी फाल्टू (मजदूर) होते थे। आजादी के बाद अंग्रेज चले गए। रजवाड़ों, नबाबों और जागीरदारों का वर्चस्व भी कम हो गया। यहां का व्यापारिक ढांचा चरमरा गया और कारखानों में रिक्शा बनाने वाले मजदूरों का काम लगभग ठप हो गया। 1950 के बाद प्रख्यात लेखक राहुल सांकृत्यायन ने मसूरी के मजदूरों की दुर्दशा को लेकर ”मजदूर संघ” बनाया। 1960 में मसूरी में पर्यटकों की थोड़ी चहल-पहल बढ़ी तो मसूरी के रिक्शा मजदूरों का रोजगार चलने लगा।
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मसूरी मजदूर संघ सचिव और रिक्शा संचालक संजय टम्टा के मुताबिक माल रोड पर 121 साइकिल रिक्शा का संचालन हो रहा है। सभी रिक्शा संचालक अब ई-रिक्शा का संचालन करना चाहते हैं। स्कूटी, बाइक के दौर में साइकिल रिक्शा का काम ठीक नहीं चलता है। माल रोड में पहुंचने वाले अधिकतर पर्यटक साइकिल रिक्शा पसंद नहीं करते हैं। 40 साल से रिक्शा चलाने वाले 65 साल के संपती लाल कहते हैं सरकार को ई-रिक्शा का संचालन की दिशा में सहयोग करना चाहिए।
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रिक्शा संचालकों की मांग पर पूर्व में ई-रिक्शा और गोल्फ कार्ट का ट्रायल किया गया था। ट्रायल में ई-रिक्शा का संचालन सफल नहीं रहा। गोल्फ कार्ट का संचालन ठीक रहा था। रिक्शा संचालकों से वार्ता के बाद शहर में गोल्फ कार्ट का संचालन की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं।
– राजेश नैथानी, ईओ, नगर पालिका मसूरी

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