राज्य की संसदीय सीटों पर सियासी दिग्गजों के उत्तराधिकारियों के लिए दिल्ली दूर रही
Dehradun: राज्य की संसदीय सीटों पर सियासी दिग्गजों के उत्तराधिकारियों के लिए दिल्ली दूर रही। दलों में परिवारवाद के प्रभाव और राजनीति की अनुकूल परिस्थितियों में भी वे हाथ लगे अवसर का लाभ नहीं उठा सके। ऐसे कुछ चेहरों को लोकसभा चुनाव में उतरने का मौका मिला, मगर उन्हें करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। विधानसभा चुनाव के दौरान कुछ सीटों पर बेशक विरासत की सियासत
उत्तराखंड की राजनीति में नव प्रभात स्थापित नेताओं में से हैं। उन्हें राजनीति पिता ब्रहम दत्त से विरासत में मिली। ब्रहम दत्त कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से थे। पिता के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर देखे जाने वाले नवप्रभात विधानसभा चुनाव भी जीते और प्रदेश की कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे। लेकिन लोकसभा में जाने का सपना उनका पूरा नहीं हो सका। जबकि उनके पिता ब्रहम दत्त ने टिहरी लोकसभा का दो बार प्रतिनिधित्व किया। पहली बार वह 1984 में चुनाव जीते थे। दूसरी बार वह 1989 में जीते। लेकिन उनके सुपुत्र नव प्रभात ने दो बार चुनाव लड़ा और दोनों बार उन्हें हार मिली। 1996 में उन्हें अखिल भारतीय इंदिरा कांग्रेस(तिवारी) से चुनाव हारे। इस चुनाव में उन्हें 22 फीसदी से अधिक वोट मिले। 1998 लोस चुनाव में वह बसपा के टिकट पर लड़े और बुरी तरह से पराजित हुए। दूसरी बार उनका दिल्ली जाने का सपना टूट गया।