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भारत की बड़ी उपलब्धि WHO ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन

WHO

अब से कुछ देर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के जामनगर में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)  के ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन (जीएसटीएम) की आधारशिला रखेंगे।

भारत में सदियों से पारंपरिक चिकित्सा प्रचलित है। छोटी-बड़ी हर बीमारी में लोग पारंपरिक औषधियों और घरेलू नुस्खों का खूब प्रयोग करते हैं। यहां तक की कोरोनाकाल के दौरान भी वैज्ञानिक तरीके से पारंपरिक जड़ी-बूटियों और नुस्खों का लोगों ने इस्तेमाल किया। इसका उन्हें फायदा भी हुआ। 

अब इसी पारंपरिक औषधियों और नुस्खों को दुनिया के सामने रखा जाएगा। जामनगर में स्थापित हो रहे इस केंद्र में पारंपरिक औषधियों को वैज्ञानिक तरीके से बेहतर बनाने का काम होगा। दुनिया के अन्य देशों को भी इसका फायदा दिलाया जाएगा। ऐसा नहीं है कि इसमें केवल आयुर्वेदिक औषधियों पर ही काम होगा। बल्कि एक्वाप्रेशर, औषधीय गुणों वाले खान-पान पर भी काम होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) साउथ-ईस्ट एशिया की रीजनल डायरेक्टर पीके सिंह ने इस सेंटर को गेम चेंजर बताया। कहा, पारंपरिक दवाएं सदियों से चली आ रहीं हैं। डब्ल्यूएचओ के 194 सदस्य देशों में से 170 में लगभग 80 प्रतिशत लोग उनका उपयोग करते हैं।

उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, ‘पारंपरिक औषधियों के व्यापक उपयोग के बावजूद, मजबूत सबूत, डेटा और मुख्यधारा के स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणाली में उनके एकीकरण को रोकने वाले मानक ढांचे की कमी है।’

डॉ. सिंह ने आगे कहा, ‘ (WHO) का ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन डेटा और एनालिटिक्स, स्थिरता और इक्विटी, नवाचार और प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करके और पारंपरिक चिकित्सा के प्राचीन ज्ञान और शक्ति का उपयोग करने और सतत विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में एक गेम-चेंजर हो सकता है। स्वास्थ्य सुनिश्चित करने और सभी उम्र के लोगों के लिए भलाई को बढ़ावा देने के लिए भी यह बेहद खास है।’

आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. सोमेश पांडेय कहते हैं, ‘भारत के परंपरागत औषधीय में काफी ताकत है। एलोपैथ ने मार्केट पर कब्जा जरूर जमाया, लेकिन आज भी ज्यादातर लोगों को परंपरागत औषधीय पर ज्यादा विश्वास है। यही कारण है कि यहां हर कोई घर में छोटी-मोटी तकलीफों का इलाज खुद कर लेता है। विदेशों में हर छोटी तकलीफ के लिए लोग एलोपैथिक दवाइयां लेते हैं। ज्यादा एलोपैथिक दवाइयों के सेवन का नुकसान भी ज्यादा होता है। इसके साइड इफेक्ट्स ज्यादा होते हैं, लेकिन आयुर्वेदिक औषधियों में ऐसा नहीं होता है।’ 

डॉ. पांडेय के मुताबिक, अब तक भारतीय लोग ही परंपरागत औषधियों के बारे में जानते थे। इस केंद्र के बनने के बाद दुनिया के अन्य देशों में भी इसका प्रचार होगा। हर कोई इसका फायदा उठा सकेगा। खासतौर पर डब्ल्यूएचओ के साथ आने का भी फायदा मिलेगा।
 (WHO) ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन एक तरह का दुनिया का पहला सेंटर है। 

  • इसका लक्ष्य ट्रेडिशनल मेडिसिन की क्षमता को तकनीकी प्रगति और साक्ष्य-आधारित रिसर्च के साथ जोड़ना है।
  • डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन पारंपरिक मेडिसिन उत्पादों पर नीतियां और मानक निर्धारित करना चाहता है। साथ ही देशों को एक व्यापक, सुरक्षित और उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य प्रणाली बनाने में मदद करता है।

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