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ग्रीन हाइड्रोजन का हब बनेगा भारत, इसका ये मिशन?

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ग्रीन हाइड्रोजन एक बार फिर चर्चा में है. दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के एक सेशन के दौरान पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने कहा कि भारत ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में लीडर बन कर उभरेगा. एक ऐसे देश के लिए ये एक महत्वाकांक्षी बयान माना जा रहा है, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए काफी हद तक जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है.
लेकिन दुनिया भर में नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने के बढ़ते दबाव की वजह से भारत ने भी क्लीन एनर्जी को लेकर आक्रामक नीति अख्तियार कर ली है. भारत अगले कुछ वर्षों में शीर्ष ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादक देशों में शामिल होना चाहता है. मोदी सरकार ने इसी साल अपनी नेशनल हाइड्रोजन पॉलिसी का एलान किया है.
भारत की प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन दर काफी कम है और इसने अपने नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य की डेडलाइन 2050 से 2070 कर दी है. लेकिन दुनिया भर में कार्बन उत्सर्जन के कड़े मानकों और ईयू के देशों में निर्यात किए जा रहे सामानों पर ग्रीन टैक्स जैसे नियमों ने भारत को ग्रीन हाइड्रोजन के बारे में गंभीरता से सोचने के लिए प्रेरित किया है.
कार्बन फ्री हाइ़ड्रोजन या ग्रीन हाइड्रोजन इस वक्त पूरी दुनिया के एजेंडे में सबसे ऊपर है. ट्रांजिशन फ्यूल के तौर पर इस्तेमाल किए जा रहा नैचुरल गैस (सीएनजी) कोयला, डीजल और हैवी फ्यूल ऑयल से साफ तो है लेकिन यह धरती के तापमान को पूर्व औद्योगिक युग के तापमान के स्तर से 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस ऊपर तक सीमित रखने में सक्षम नहीं है. जबकि बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए ये जरूरी है.
भारत ने इस साल फरवरी में नेशनल हाइड्रोजन मिशन का एलान किया था. इसके तहत भारत को 2030 तक हर साल पचास लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन बनाने में सक्षम बनाना है. ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए पानी और सस्ती बिजली की जरूरत है. भारत के पास ये दोनों संसाधन मौजूद हैं. भारत के पास काफी लंबा समुद्र तट है और भरपूर सूरज की रोशनी भी. सोलर बिजली और समुद्र के पानी ग्रीन हाइड्रोजन बनाने में काफी मददगार साबित हो सकता है. भारत ने तो एक कदम आगे बढ़ कर ग्लोबल ग्रीन हाइड्रोजन हब बनने का मंसूबा बांध रखा है.
ग्रीन हाइड्रोजन क्या है?
ग्रीन हाइड्रोज एक तरह की स्वच्छ ऊर्जा है, जो रीन्युबल एनर्जी जैसी सोलर पावर का इस्तेमाल कर पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में बांटने से पैदा होती है.
बिजली जब पानी से होकर गुजारी जाती है तो हाइड्रोजन पैदा होती है.ये हाइड्रोजन कई चीजों के लिए ऊर्जा का काम कर सकती है. हाइड्रोजन बनाने में इस्तेमाल होने वाली बिजली रिन्युबल एनर्जी स्त्रोत से आती है. लिहाजा इससे प्रदूषण नहीं होता है. इसीलिए इसे ग्रीन हाइड्रोजन कहते हैं. पर्यावरणवादियों का दावा है कि यह ऑयल रिफाइनिंग, फर्टिलाइजर, स्टील और सीमेंट जैसे भारी उद्योगों को कार्बन मुक्त करने में मदद कर सकती है. लिहाजा ग्लोबल कार्बन उत्सर्जन में कटौती में भी ये मददगार साबित होगी.
हाइड्रोजन एक रंगहीन गैस होती है. हाइड्रोजन का ग्रीन, ब्लू, ग्रे से लेकर फिरोजी रंग इस बात पर निर्भर करता है है कि ये बनाई कैसे गई गई है. ग्रीन हाइड्रोजन एक मात्र क्लीन एनर्जी है, जो रिन्युबल एनर्जी के इस्तेमाल से बनाई जाती है. टेरी के मुताबिक साल 2020 में भारत में जीवाश्म ईंधन से साठ लाख टन ग्रे हाइड्रोजन का उत्पादन किया गया था. 2050 तक भारत में हाइड्रोजन की मांग पांच गुना तक बढ़ जाएगी. लेकिन ग्रीन हाइड्रोजन, जीवाश्म ईंधन की तुलना में तभी लागत प्रतिस्पर्द्धी हो पाएगी जब यह 50 फीसदी सस्ती हो जाएगी.
रिन्युबल एनर्जी की भारत की कुल स्थापित ऊर्जा में 40 फीसदी हिस्सेदारी है. भारत चीन और अमेरिका के बाद कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक है. लेकिन बड़े पैमाने पर ऊर्जा भंडारण के बगैर रिन्युबल एनर्जी पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोतों का विकल्प नहीं बन सकती. कहने का मतलब ये है कि रिन्युबल एनर्जी के लिए स्टोरेज क्षमता विकसित करना जरूरी है, तभी इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो सकता है. लिथियम बैटरियों बड़े पैमाने पर ऊर्जा का भंडारण नहीं हो सकता. हालांकि इलेक्ट्रिक वाहनों में फिलहाल इसका खूब इस्तेमाल हो रहा है.
लेकिन ग्रीन हाइड्रोजन का काफी बड़ी मात्रा में भंडारण हो सकता है. यह लंबी दूरी का सफर करने वाले ट्रक, बैटरी से चलने वाली कार, बड़े कार्गाे ले जाने वाले जलपोत, ट्रेनों के लिए बेहतरीन ऊर्जा स्त्रोत साबित हो सकती है.
स्टील उद्योग में हाइड्रोजन का काफी इस्तेमाल होता है
क्या है भारत की ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी?
भारत सरकार ने अपनी ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी तहत रिसर्च और दूसरी जरूरतों के लिए फंड मुहैया कराने का एलान किया है. इसके लिए सस्ती रिन्युबल एनर्जी के साथ इंटर स्टेट पावर ट्रांसमिशन के लिए 25 साल तक की छूट का प्रावधान है. हालांकि ये छूट उन्हीं परियोजनाओं को मिलेगी, जो जून 2025 के पहले शुरू हो जाएंगीं. ग्रीन हाइड्रोजन या ग्रीन अमोनिया प्लांट रिन्युबल एनर्जी खरीदने के लिए एप्लीकेशन मिलने के 15 दिनों के अंदर ओपन एक्सेस दे दी जाएगी. सरकार की छूट देने की नीतियों के बाद देश की सबसे बड़ी कंपनियों रिलायंस इंडस्ट्रीज ने रिन्युबल एनर्जी सेक्टर में बड़ा एलान किया है.
भारत में 2029-30 तक हाइड्रोजन की मांग 1.17 करोड़ टन पर पहुंच जाने की संभावना है. फिलहाल इसकी मांग 67 लाख टन है. इस 67 लाख टन में से लगभग 36 लाख टन यानी 54 फीसदी का इस्तेमाल पेट्रोलियम रिफाइनिंग में होता है. बाकी का इस्तेमाल फर्टिलाइजर उत्पादन में होता है. हाालंकि ये ग्रे हाइड्रोजन है जो नैचुरल गैस या नैप्था से बनाई जाती है. जाहिर है इससे काफी प्रदूषण फैलता है, जो भारत के कार्बन उत्सर्जन कटौती के लक्ष्य में एक बड़ी बाधा है.
ग्रीन हाइड्रोजन कार्बन उत्सर्जन कटौती में कितनी मददगार?
ग्रीन हाइड्रोजन कार्बन उत्सर्जन कटौती में काफी मददगार साबित हो सकती है. मिसाल के तौर पर स्टील और आयरन सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाली इंडस्ट्री में शुमार है. दुनिया के कुल ग्रीन हाउस उत्सर्जन में इसकी हिस्सेदारी सात फीसदी है. स्टील का व्यापक इस्तेमाल है, कार बनाने से लेकर पुल बनाने तक. भारत में 2050 तक जितने कार्बन डाइक्साइड उत्सर्जन की आशंका है, उसमें इस इंडस्ट्री का योगदान 35 फीसदी तक चला जाएगा. अगर स्टील इंडस्ट्री ने ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल करना शुरू किया तो यह कार्बन उत्सर्जन लगभग खत्म हो जाएगा. भारत में प्रदूषण नियंत्रण के लिहाज से यह बड़ी सफलता होगी.
भारत में ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन की क्या चुनौतियां हैं?
भारत में ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल तभी बढ़ेगा जब इसका उत्पादन सस्ता होगा. यानी स्टील, सीमेंट और वाहन उद्योग इसका इस्तेमाल तभी करेंगे, जब यह उनकी लागत को नियंत्रण में रखेगा. फिलहाल ग्रीन हाइड्रोजन से बनाए जाने वाला स्टील पारंपरिक ईंधन से बनाए जाने वाले स्टील से 50 से 127 फीसदी महंगा हो जाएगा.
इस वक्त भारत में हाइड्रोजन की कीमत 340 रुपये से 400 रुपये प्रति किलो है. अगर ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल इंडस्ट्री में तभी बढ़ेगा, जब इसकी कीमत 150 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाएगी. रिफाइनरी, फर्टिलाइजर और स्टील उद्योग हाइड्रोजन के सबसे बड़े उपभोक्ता है. इन उद्योगों के अलावा बिजली उत्पादन, हाइड्रोजन स्टोरेज और मोबिलिटी इंडस्ट्री ( बैटरी से चलने वाली कारों, रेल, ट्रक बस, और जलपोत) में भी सस्ते हाइड्रोजन उत्पादन को लेकर आरएंडडी गतिविधियां बढ़ गई हैं.
ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए कंपनियां क्या कर रही हैं?
सीएनबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने ग्रीन एनर्जी उत्पादन में 75 अरब डॉलर के निवेश का ऐलान तो किया है. लेकिन कंपनी ने इसका खुलासा नहीं किया है कि वह ग्रीन हाइड्रोजन में कितना निवेश करेगी. इस साल अप्रैल में हैदराबाद की कंपनी ग्रीनको ग्रुप और बेल्जियम की कंपनी जॉन कोकरिल ने भारत में दो गीगावाट क्षमता का हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलाइजर फैक्टरी लगाने का एलान किया था. ग्रुप की ओर से चीन के बाहर लगाई जाने वाली यह सबसे बड़ी फैक्टरी है.
मार्च में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने दो निजी कंपनियों के साथ मिल कर ग्रीन हाइड्रोजन बनाने का एलान किया था. इन कंपनियों ने ग्रीन हाइड्रोजन बनाने में इस्तेमाल होने वाली इलेक्ट्रोलाइजर बनाने का भी एलान किया है. रिलायंस और अनडानी दोनों ने दुनिया का सबसे सस्ता हाइड्रोजन बनाने का एलान किया है. इन कंपनियों का कहना है वो एक डॉलर की कीमत पर ग्रीन हाइड्रोजन बेचेंगी.
ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में इलेक्ट्रोलाइजर की अहम भूमिका है. या तो भारत में सस्ते इलेक्ट्रोलाइजर बनें या फिर इसकी तकनीक के आयात पर शुल्क बेहद कम होना चाहिए. भारत का ग्रीन हाइड्रोजन मुकाम तभी पूरा होगा जब कंपनियों की पहल और सरकारी नीतियों का तालमेल बनेगा. देखना ये है कि आगे इस मिशन की रफ्तार क्या होगी. लेकिन भारत के पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने वर्ल्ड इकोनॉमी फोरम में इस मुद्दे पर जो प्रतिबद्धता जताई है, उससे लगता है कि भारत इसे लेकर काफी गंभीर है.

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