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पूर्व पुलिस महानिदेशक सिद्धू पर आरोप अवैध तरीके से जमीन खरीदी और इस पर खड़े पेड़ काट दिए

देहरादून: पूर्व पुलिस महानिदेशक सिद्धू ने वर्ष 2012 में मसूरी वन प्रभाग के वीरगिरवाली गांव में यह जमीन खरीदी थी। मार्च 2013 में इस जमीन पर खड़े साल के 25 पेड़ काट दिए गए थे। वन विभाग ने इसकी जांच कराई तो पता चला कि संबंधित पेड़ जिस जमीन पर है, वह रिजर्व फॉरेस्ट है। आरोप था कि सिद्धू ने अवैध तरीके से जमीन खरीदी और इस पर खड़े पेड़ काट दिए। मामले में वन विभाग ने उनके खिलाफ जुर्म काटा था।एनजीटी ने भी 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया था। वन विभाग ने कुछ समय पूर्व शासन से पूर्व डीजीपी के खिलाफ रिजर्व फॉरेस्ट में जमीन कब्जाने और पेड़ काटने के आरोप में मुकदमा दर्ज करवाने की अनुमति मांगी थी। 10 अक्तूबर को सचिव वन विजय कुमार यादव ने इसकी अनुमति भी दे दी। इसके बाद वन प्रमुख विनोद कुमार सिंघल ने डीएफओ मसूरी आशुतोष को अग्रिम कार्रवाई के लिए निर्देशित किया। एसपी सिटी सरिता डोबाल ने बताया कि वन विभाग की ओर से राजपुर थाने को तहरीर मिली है।

वर्ष 2012 में मसूरी वन प्रभाग के वीरगिरवाली गांव में 1.5 हेक्टेयर भूमि पर खड़े पेड़ों को काटने के मामले में पूर्व डीजीपी बीएस सिद्धू के खिलाफ वन विभाग ने राजपुर थाने में तहरीर दी है। मामले में 10 अक्तूबर को ही शासन की ओर से मुकदमा दर्ज कराने की अनुमति दे दी गई थी। 

पूरे प्रकरण की फिलहाल जांच की जा रही है। भाजपा के वरिष्ठ प्रवक्ता और राज्य निर्माण आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान ने इस मामले में जिला जज की कोर्ट में परिवाद दर्ज कराया था। हालांकि उसे सबूतों के आभाव में कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इस मामले में रविंद्र जुगरान का कहना है कि पूर्व डीजीपी ने पद पर रहते हुुए गलत काम किया है। पूर्व में उनकी अपील खारिज हो गई थी, लेकिन अब उन्हीं के प्रयासों से 12 साल बाद शासन ने मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए हैं।

पूर्व डीजीपी बीएस सिद्धू का कहना है कि वन विभाग उनके खिलाफ पहले जुर्म काट चुका है, जो गलत था। इस मामले में जिला न्यायालय में भी मेरे खिलाफ 156 (3) के तहत मुकदमा दर्ज कराने को प्रार्थनापत्र दिया गया था लेकिन, इसमें कोई साक्ष्य नहीं मिले। लिहाजा, न्यायालय ने इस प्रार्थनापत्र को खारिज कर दिया। उन्होंने बताया कि कुछ लोग वन विभाग और शासन को गुमराह कर उनकी छवी को खराब करना चाहते हैं। उन्होंने इस संबंध में एसएसपी देहरादून को विस्तार पूवर्क पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने अपना पक्ष रखा है। बताया कि जिन आरोपों को न्यायालय में बल नहीं मिला उनमें अब मुकदमा किस आधार पर दर्ज हो सकता है।

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