‘नारी शक्ति है, सम्मान है, गौरव और अभिमान है।

Dehradun : नारी शक्ति है, सम्मान है, गौरव और अभिमान है। शक्ति के भी नौ रूप हैं और प्रत्येक रूप में नारी ही हैं। नवरात्र के इस अवसर पर अमर उजाला अपने पाठकों को उन ‘शक्तियों’ से परिचित कराएगा, जिन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी ताकत से एक अलग मुकाम बनाया है।
महिलाएं हर मोर्चे पर सफलता की कहानियां लिख रही हैं। समय की बदलती धारा के साथ महिलाएं अपने प्रयासों और प्रयत्नों में कहीं पीछे नहीं हैं। आज से हर दिन पढ़िए ऐसी ही नौ महिलाओं की कहानी, तो समाज में अलग स्थान रखती हैं।

एकल महिलाओं को दिखाई रोजगार की राह
देहरादून। सरकारी नौकरी छोड़ कर संगीता थपलियाल ने अपना जीवन पर्यावरण संरक्षण और समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया। ये उन महिलाओं के लिए रोशनी हैं, जो एकाकीपन के अंधेरे में गुमसुम थीं। आज ये महिलाएं न केवल आर्थिक रूप से समर्थ हुईं हैं। बल्कि समाज और पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे रही हैं। 2019 में महिला एवं बाल विकास विभाग की नौकरी छोड़ कर संगीता ने घरेलू हिंसा से पीड़ित एकल महिलाओं को रोजगार देने के लिए हेमवंत फाउंडेशन बनाया। इन्होंने नदियों को प्रदूषित कर रही मंदिरों में चढ़ाई जाने वाली सिंथेटिक चुनरियों की जगह सूती चुनरियां तैयार की। इसके अलावा केदारनाथ और बदरीनाथ में प्रसाद के लिए कागज के बैग, गाय के गोबर से दीए, गणेश की मूर्ति बनाई। इससे कई महिलाओं के हाथों को काम मिला। वर्तमान में 30 महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ा है।

एम्स ऋषिकेश में नर्सिंग ऑफिसर के पद पर कार्यरत सुरभि रावत बेजुबान पशुओं की सेवा कर मानवता का संदेश दे रही हैं। निराश्रित पशुओं के लिए दाना-पानी जुटाना, सड़क दुर्घटनाओं में घायल पशुओं का इलाज करना उनकी दिनचर्चा में शामिल है। इसके लिए उन्होंने ”हेल्पिंग हेंडस” ग्रुप का गठन किया है। इसमें सुरभि जैसे कई उत्साही युवा भी लावारिस पशुओं की सेवा कर रहे हैं। पौड़ी की रहने वाली सुरभि शादी के बाद अब रानीपोखरी में रहती हैं। कोरोनाकाल की आपातकालीन स्थितियों में उन्होंने निराश्रित पशुओं की सेवा का बीड़ा उठाया, जिसे वह आज भी एक धर्म की तरह निभा रही हैं। समूह से जुड़े सदस्यों के सहयोग से इकट्ठा की गई धनराशि से सुरभि ने 100 से अधिक जलकुंडी भी बनवाए हैं, जिनमें पशुओं की लिए चारा और पानी दिया जाता है। क्षेत्र के लिए उन्हें कभी भी मदद के लिए कॉल कर लेते हैं।

देहरादून: हिरेशा ने युवाओं को दिखाई स्वरोजगार की राह
खेती को घाटे का सौदा बताते हुए नौकरी की तलाश में पलायन करने वाले युवाओं को देहरादून की हिरेशा वर्मा ने स्वरोजगार की राह दिखाई है। वह खासकर महिलाओं को मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में प्रोत्साहित कर रही हैं। आईटी कंपनी छोड़ने के बाद हिरेशा ने मशरूम उत्पादन का काम शुरू किया। वह अब तक न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि हिमाचल एवं कुछ अन्य प्रदेशों में भी महिलाओं को इस क्षेत्र में प्रशिक्षित कर उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं। हिरेशा के मुताबिक अब तक पांच हजार महिलाओं को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दे चुकी हैं। छरबा में मशरूम उत्पादन का प्लांट चलाने वाली हिरेशा को इस क्षेत्र में कई पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्होंने बताया कि युवाओं को इस क्षेत्र में प्रोत्साहित कर पहाड़ से होने वाला पलायन काफी हद तक रोका जा सकता है। इसके लिए वह लगातार प्रयास कर रही हैं।

देहरादून: सबके लिए उम्मीद की किरण हैं बबिता बुआ
बबिता बुआ हर किसी के लिए उम्मीद की किरण हैं। स्कूल छोड़ चुके बच्चों को फिर से शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ना हो, गरीब कन्याओं का विवाह या बेसहारा बुजुर्गों के लिए छत का इंतजाम। हर कोई बबिता सहोत्रा के पास उम्मीद लेकर पहुंचता है। इलाके के लोग उन्हें बबिता बुआ के नाम से पुकारते हैं। वह जरूरतमंद बालिकाओं को शिक्षा प्रदान करने के साथ ही रोजगार से भी जोड़ रही हैं। इनके प्रयासों से कई बेटियां दून के नामी स्कूलों में अध्ययन कर रही हैं। गरीब कन्याओं का विवाह कराने की दिशा में भी बबिता के प्रयास सराहनीय हैं। वह मलिन बस्तियों को नशे से मुक्त करने के साथ ही बुजुर्गों की सेवा के लिए भी काम कर रही हैं। काजल, दीक्षा, निधि, प्रतिभा, प्रतीक्षा, दीपिका जैसी कई बालिकाओं को स्कूल तक पहुंचाया। इनमें दीपिका टीचर बन गई हैं। इसके अलावा भी कई लड़कियां नौकरी कर रही हैं।

गोपेश्वर: मुन्नी ने दूध बेचकर बनाया मुकाम
मंडल घाटी के सगर में रहने वाली मुन्नी ने अभावों से भरी जिंदगी से संघर्ष करते हुए दूध बेचकर अपना नया मुकाम हासिल किया है। कभी आर्थिक तंगी से जूझ रही मुन्नी के दूध के कारोबार से कई परिवारों को भी रोजगार मिला है। चमोली के नंदानगर (घाट) के लुंतरा गांव की रहने वाली मुन्नी के पिता की 2006 में मौत हो गई थी। दसवीं के बाद 2011 में वह गोपेश्वर के पास सगर में स्वामी योगानंद के पास मेहनत मजदूरी करने आ गईं। उन्होंने मुन्नी को 12वीं तक पढ़ाया और फिर एक गाय लेकर दी। जहां से मुन्नी ने दूध के कारोबार में कदम रखा। शुरू में करीब 10 से 12 लीटर दूध से काम शुरू करते हुए वह आज अनेक घरों से दूध एकत्रित करती है और 50-60 लीटर दूध हर दिन गोपेश्वर में घर-घर बेचती हैं। दूध बेचने के लिए अपने दम पर स्कूटी खरीदी, उसे सीखा और अब स्कूटी से वह लोगों को दूध बेचती है।

पौड़ी: पशु बलि रोकने की मिशाल हैं सरिता नेगी
पौड़ी की सरिता नेगी नाराशक्ति की मिशाल हैं। जिले के प्रसिद्ध बूंखाल कालिंका माता मंदिर में होने वाली पशुबलि को रोकने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने यहां पर स्थानीय ग्रामीणों के भारी विरोध के बाद भी वह हार नहीं मानीं और पशुबलि की प्रथा को समाप्त करवाया। इसके साथ ही उत्तराखंड के कई मंदिरों में पशुबलि को रोकने के लिए उन्होंने आंदोलन चलाया। जिसका परिणाम रहा कि प्राचीन समय से चल रही पशुबलि की प्रथा कई मंदिरों में बंद हो गई। इसके अलावा सरिता नेगी ने शराबबंदी को लेकर भी पहाड़ के कई क्षेत्रों में आंदोलन चलाया। शराबबंदी को लेकर उन्हें जेल भी जाना पड़ा। उन्हें राज्य सरकार ने पशुकल्याण बोर्ड में भी अहम जिम्मेदारी दी। राज्य सरकार ने उनके इन प्रयासों के लिए उन्हें तीलू रौतेली पुरस्कार से भी सम्मानित किया। उन्हें राजकीय पशुकल्याण बोर्ड, राष्ट्रीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड की ओर से भी सम्मान से नवाजा गया।

नौगांव: सीमा ने गांव को किया खुले में शौच से मुक्त
उत्तरकाशी के ग्राम पंचायत कंडाऊं की प्रधान सीमा सेमवाल ने अपने चार साल के कार्यकाल में गांव को खुले में शौच से मुक्त कर दिया है। इसके लिए उन्होंने सभी परिवारों में शत-प्रतिशत शौचालय बनवाए हैं। साथ ही बाथरूम के पानी के लिए प्रत्येक परिवार में सोखता पिटों और नाली का निर्माण करवाया। जिसके लिए उन्हें हाल में स्वच्छ सर्वेक्षण पुरस्कार से भी नवाजा गया। विकासखंड नौगांव के ग्राम पंचायत कंडाऊं में 70 परिवार निवास रहते हैं और गांव की करीब 500 आबादी है। 2019 में ग्राम प्रधान बनी सीमा सेमवाल की मेहनत का परिणाम है कि आज गांव के सभी परिवारों में शौचालय हैं। बीते साल 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी ग्राम प्रधान सीमा को स्वच्छता गौरव सम्मान से नवाजा था। वह जिले के अन्य प्रधानों के लिए मिसााल हैं।

उत्तरकाशी: बेजुबान जानवरों का सहारा हैं खुशी
ज्ञानसू निवासी 21 वर्षीय खुशी नौटियाल बेजुबान जानवरों के लिए सहारा हैं। वह पिछले सात वर्षों से सड़क हादसों में घायल लावारिस और बीमार कुत्तों व गायों की मरहम पट्टी के साथ उनका उपचार करती हैं। पीजी कॉलेज उत्तरकाशी में बीएससी फाइनल की छात्रा खुशी बेजुबान जानवरों की मदद के लिए अपने बैग में हर वक्त जरूरी दवाइयां रखती हैं। उनकी निस्वार्थ सेवा को देखते हुए जिला रेडक्रॉस समिति ने भी उन्हें सबसे कम उम्र की सदस्य के रूप में समिति में जगह दी है। साथ ही जानवरों की मरहम पट्टी के लिए उन्हें जरूरी दवाइयां भी उपलब्ध करा रही है। उन्होंने अब तक सड़क हादसों में कई गंभीर घायल कुत्तों को अपने घर पर रखकर उपचार किया है। जब उनके घाव भर जाते हैं, तो वह उन्हें जहां से लेकर आती हैं, वहीं छोड़ देती है। खुशी की निस्वार्थ सेवा के लिए उन्हें कई मंचों पर सम्मानित जा चुका है।

विकासनगर: श्यामा के लिए आसान नहीं था घूंघट प्रथा को तोड़ना
फतेहपुर निवासी श्यामा चौहान का संघर्ष किसी प्रेरणा से कम नहीं है। श्यामा के गांव में घूंघट का चलन था। वह विकट परिस्थितियों में घूंघट प्रथा को तोड़ घर की दहलीज से बाहर निकलीं। स्वयं को मजबूत किया और 200 क्षेत्रीय महिलाओं को रोजगार भी दिया। उनके स्वयं सहायता समूह की ड्रेस का रंग गुलाबी है। यह समूह क्षेत्र में गुलाबी गैंग के नाम से मशहूर है। एक समय था, जब किसी ने धोखाधड़ी कर श्यामा चौहान का घर बिकवा दिया। पति त्रिलोक सिंह का स्पेयर पार्ट्स का कारोबार भी बंद हो गया। परिवार के लिए फांके की नौबत आ गई। मार्च 2012 में उन्होंने महिला जागृति स्वयं सहायता समूह शुरू किया। ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान से जूट बैग और फाइल फोल्डर बनाने का प्रशिक्षण लिया। आज समूह के माध्यम से फतेहपुर, जस्सोवाला, ढकरानी, शेरपुर, भुड्डी आदि क्षेत्र की 200 महिलाओं को रोजगार मिला है।