महाराष्ट्र में सियासी उठापटक के बीच क्या निशाने पर शरद पवार

राजनीति के पंडितों की निगाह इस समय महाराष्ट्र पर टिकी है। उत्तर भारत की क्षेत्रीय भाषा में मराठा राजनीति के ‘घाघ’ कहे जाने वाले शरद पवार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले भी इसको लेकर संवेदनशील हैं। इस संवेदनशीलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री के तौर पर एकनाथ शिंदे के नाम की देवेन्द्र फडणवीस द्वारा घोषणा करते ही शरद पवार ने शिंदे को बधाई और शुभकामना देने में समय नहीं लगाया। जबकि इससे पहले सहयोगी दल शिवसेना के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सरकार बचाने में पवार ने अपने स्तर से एड़ी-चोटी का जोर लगाया था। पवार और पुत्री सुप्रिया सूले को जरूर इसका अंदाजा है कि आगे क्या होने वाला है?
पहले तो मजबूती से विश्वास मत हासिल करे शिंदे सरकार
भाजपा और एकनाथ शिंदे की टीम दो रणनीति पर सहमत थी। पहली यह कि एकनाथ शिंदे के मुंबई आने से पहले मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस्तीफा दे दें। इसके बाद सत्ता पर नियंत्रण के साथ सबकुछ ठीक हो जाएगा। जबकि शरद पवार चाहते थे कि उद्धव ठाकरे आखिरी दम तक राजनीतिक परिस्थिति का सामना करें। शिवसेना के ही एक बड़े नेता ने बताया कि राजनीति में बढ़ रही इस छीछालेदर में उद्धव ठाकरे नहीं पड़ना चाहते थे। वह पहले भी इस्तीफा देने की पेशकश कर चुके थे और 29 जून को देर रात उन्होंने ऐसा ही किया। सत्ता में एक नाथ शिंदे की सरकार आ गई है। भाजपा के वरिष्ठ नेता देवेन्द्र फडणवीस राज्य के उप मुख्यमंत्री हैं।
इस सरकार को सोमवार को महाराष्ट्र की विधानसभा में विश्वास मत हासिल करना है। दिल्ली से भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह हर राजनीतिक घटनाक्रम पर बारीक निगाह रख रहे हैं। इसके अलावा दो मंत्री और सक्रिय हैं। वह हैं नितिन गडकरी और पीयूष गोयल। नितिन गडकरी खबर ले रहे हैं और पीयूष गोयल भावी सरकार की रुपरेखा को लेकर उत्साहित हैं। एक खेमा भाजपा नेताओं का भी है जो अभी भी देवेन्द्र फडणवीस को मुख्यमंत्री की बजाय उप मुख्यमंत्री बनाए जाने को पचा नहीं पा रहा है। इन सबके बावजूद भाजपा के रणनीतिकारों की मुख्य कोशिश 4 जुलाई को ध्वनिमत से मजबूती के साथ शिंदे सरकार के विश्वासमत पाने पर टिकी है।
शरद पवार की असल चिंता क्या है?
कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना, भाजपा और महाराष्ट्र की राजनीति के करीब डेढ़ दर्जन जानकारों से चर्चा में निकलकर आ रहा है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीच में अब पार्टी पर अधिकार की लड़ाई बची है। संवैधानिक मामलों के जानकार वकील उज्वल निकम कहते हैं महाराष्ट्र की सत्ता एकनाथ के पास है और शिवसेना उद्धव ठाकरे के पास। शिवसेना के संविधान के अनुसार उसका अध्यक्ष आजीवन होगा। इस तरह से संवैधानिक रूप से उद्धव ठाकरे मजबूत स्थिति में हैं। बाकी कानूनी लड़ाई, नेता, कार्यकर्ता का समर्थन और चुनाव आयोग तय करेगा। इस बारे में भाजपा के नेता कहते हैं कि यह बाद की बात है। अब तो भाजपा के हिन्दुत्व की जीत हुई है। महाराष्ट्र में अब उद्धव ठाकरे और उनकी शिवसेना को अपनी चिंता है। उद्धव की सेना के कमांडर कहते हैं कि चिंता की कोई बात नहीं। जब मनसे प्रमुख राज ठाकरे खुद को नहीं सेट कर पाए तो एकनाथ शिंदे के लिए भी यह आसान नहीं है।
असली लड़ाई एनसीपी प्रमुख शरद पवार के साथ है। महाराष्ट्र के कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ताजा हालात पर नजर बनाए हैं। उन्हें भी राजनीतिक उथल-पुथल होने का एहसास है। दरअसल मराठा राजनीति में शरद पवार का कद और राजनीतिक पकड़ तथा उनके दांव भाजपा नेताओं के निशाने पर हैं। 2019 में भाजपा-शिवसेना की सरकार न बन पाने का सबसे बड़ा कारण शरद पवार ही थे। उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद का प्रस्ताव और कांग्रेस को मना लेने का वचन पवार दे आए थे। उन्होंने सोनिया गांधी से सीधे बात की और रास्ता बनाया। सरकार बनने के ऐन पहले उनके भतीजे अजीत पवार ने भाजपा के नेता देवेन्द्र फडणवीस के साथ जाकर उप मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली। इसके बावजूद शरद पवार ने ही इस बाजी को भी पलट दिया।
ढाई साल से टारगेट पर थी एनसीपी
एनसीपी नेता एकनाथ खड़से इस समय खासे शांत हैं। स्व. गोपीनाथ मुंडे के भतीजे, अजीत पवार से सही समीकरण रखने वाले और देवेन्द्र फडणवीस के साथ मधुर संबंध बनाकर चलने वाले धनंजय मुंडे की निगाह घड़ी की सुई पर टिकी है। धनंजय मुंडे के बारे में कहा जा रहा है कि वह शुक्रवार 30 जून को ही देवेन्द्र फडणवीस से औपचारिक भेंट कर आए हैं। दूसरे नेता एकनाथ खड़से हैं। एनसीपी में थोड़ा दमदार हैं। खड़से के खिलाफ भी ऐजेंसियों के नोटिस हैं। शरद पवार के भतीजे अजीत पवार के व्यवसाय आयकर विभाग के रडार पर हैं। अजीत पवार के करीबी कारोबारियों को भी नोटिस, सम्मन जारी हो चुके हैं। अजीत पवार ही वह शख्स हैं, जिन्होंने 2019 में एक दर्जन से अधिक विधायकों को लेकर सुबह-सबेरे देवेन्द्र फड़णवीस को दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का रास्ता साफ करा दिया था।
यह बात अलग है कि 70 घंटे के भीतर इस सरकार को सत्ता से हटना पड़ा। एनसीपी नेता हसन मुश्रीफ की चीनी मिलें हैं। इसमें गड़बड़ी और धोखाधड़ी के आरोप हैं। उपरोक्त सभी उद्धव ठाकरे सरकार में मंत्री रहे हैं। इसके अलावा एनसीपी के दो नेता, नवाब मलिक और अनिल देशमुख जेल में हैं। इन नेताओं की फेहरिस्त पर मत जाइए। सूची थोड़ी लंबी है, जिन्हें नोटिस मिला या जांच ऐजेंसियों के टारगेट पर हैं। शिवसेना के नेता संजय राउत कहते हैं कि एनसीपी और शिवसेना तो शुरू से ही टारगेट पर रही है। एनसीपी के एक सचिव भी कहते हैं कि ढाई साल से लगातार मुश्किलें रही हैं? उन्हें यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि महाराष्ट्र राज्य सरकार का दबाव बढ़ने पर कुछ हमारे नेता भी साथ छोड़ सकते हैं।
मसला पवार के उत्तराधिकार का भी है
एनसीपी प्रमुख की बेटी सुप्रिया सुले सांसद हैं। पवार उन्हें अपने उत्तराधिकारी के तौर पर देखते हैं। पवार का स्नेह भतीजे अजीत पवार पर भी है। एनसीपी के नेताओं में इसे लेकर दो तरह की स्थितियां हैं? एक वर्ग नाम न छापने की शर्त पर कहता है कि पवार की राजनीतिक उत्तराधिकारी सुप्रिया सुले ही होंगी। पिछले ढाई साल में उन्होंने महाराष्ट्र की क्षेत्रीय राजनीति में काफी समय देकर खुद को स्थापित किया है। दूसरा वर्ग कहता है कि वह दिल्ली की लुटियन जोन की पांच सितारा राजनीति के लिए उपयुक्त हैं। महाराष्ट्र में भाऊ (पवार साहब) के बाद उनके उत्तराधिकारी अजीत पवार ही होंगे। माना यह जा रहा है कि भाजपा के रणनीतिकारों के लिए शरद पवार की राजनीतिक पकड़ को कमजोर करना अहम रहेगा। इसलिए उनके एजेंडे में एनसीपी प्रमुखता से रहने वाली है। देखना होगा कि पवार इस चुनौती से कैसे निबटते हैं। वैसे भी शरद पवार को स्वयं जांच एजेंसियों के नोटिस मिल ही रहे हैं।
क्या देवेन्द्र फडणवीस आगे-आगे चलेंगे?
महाराष्ट्र भाजपा में चंद्रकांत पाटील जैसे नेता हैं। लेकिन उप मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने अपने को स्थापित कर लिया है। दिल्ली में बैठे एक दो केन्द्रीय मंत्री फडणवीस की योग्यता से जलते हैं तो तीन-चार उनके साथ अच्छा व्यवहार जोडने में लगे रहते हैं। कारण बस एक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खाते में फडणवीस का नाम ढंग से लिखा है। हालांकि माना जा रहा है कि अमित शाह के मुख्यमंत्री पद के लिए न मानने के कारण देवेन्द्र फडणवीस को उपमुख्यमंत्री पद अभी भी नागवार लग रहा है। फडणवीस सरकार में मंत्री रहे एक सूत्र का कहना है कि अब बस आगे देखते जाइए। 2024 में सब कुछ नया-नया मिलेगा।