Dehradun: देवभूमि देवप्रयाग में भागीरथी अलकनंदा का संगम केवल नदियों का नहीं, बल्कि प्राचीन भारतीय ज्ञान और आधुनिक शिक्षा के समन्वय का भी गवाह बन रहा है। संस्कृत केंद्रीय विश्वविद्यालय के श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में इन दिनों एक ऐसा यज्ञ चल रहा है, जिसकी आहुति आने वाले दशकों में भारत की शिक्षा पद्धति को मैलिक रूप से बदलने वाली है। इसके लिए परिसर में देशभर के संस्कृत विद्वानों ने एक ऐतिहासिक मिशन की शुरुआत की है।
अगले एक दशक में लाखों अंग्रेजी ग्रंथों संस्कृत में भारतीयकरण किया जाना है। भारतीय ज्ञान परंपरा विभाग के राष्ट्रीय समन्वयक गटि एस. मूर्ति ने अभियान का नेतृत्व करते हुए कहा की यह केवल अनुवाद नहीं, बल्कि भारतीय दृष्टि से ज्ञान का पुनर्निर्माण है। पश्चिमी ग्रंथों में प्रकृति को जीतने की बात होती है, जबकि भारतीय परंपरा उसे पूजती है। हमें इसी भाव को शिक्षा में पुनर्स्थापित करना है।
भावी पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़कर वैश्विक ज्ञान का करेगी नेतृत्व
उन्होंने बताया कि 1835 में लॉर्ड मैकाले की ओर से स्थापित शिक्षा प्रणाली ने भारतीय ज्ञान परंपराओं को हाशिए पर धकेल दिया था। इस नई पहल का उद्देश्य उसी ऐतिहासिक असंतुलन को सुधारना है। 2045 तक इसके परिणाम दिखने और मैकाले की शिक्षा पद्धति का प्रभाव कम होगा। उन्होंने कहा कि आने वाले 20 वर्षों में भारत की शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव आएगा। हमारी भावी पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़कर वैश्विक ज्ञान का नेतृत्व करेगी।
अंग्रेजी ग्रंथों की भावना को संस्कृत के मूल दर्शन के अनुरूप ढाला ढाला जाएगा। विज्ञान, गणित, दर्शन और इतिहास जैसे विषयों पर भारतीय दृष्टिकोण से लिखित सामग्री तैयार की जाएगी। छात्रों को प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के समन्वय से पढ़ाया जाएगा। यह कोई साधारण परियोजना नहीं बल्कि भारत के गौरवशाली अतीत को भविष्य से जोड़ने का एक साहसिक कदम है।