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सरकार के फंसे 5.35 करोड़

विजिलेंस जांच में फंसे शासन के एक अपर सचिव स्तर के अधिकारी के गलत आदेश से प्रदेश सरकार के करीब पांच करोड़ 35 लाख रुपये रुड़की के एक निजी शिक्षण संस्थान में फंस गए। तथ्यों की पड़ताल किए बगैर शासन स्तर से निजी संस्थान को पीजीडीएम कोर्स के लिए धनराशि का नियमों के विपरीत भुगतान कर दिया गया, लेकिन जब शासन को गलती समझ में आई तो संस्थान से धनराशि की वसूली के आदेश कर दिए गए।
दो साल बीत जाने के बाद भी सरकार निजी संस्थान से धनराशि नहीं वसूल पाई है। हरिद्वार के जिला समाज कल्याण अधिकारी अब संस्थान को वसूली का तीसरा नोटिस भेजने जा रहे हैं। इससे पहले भेजे गए दो नोटिस का संस्थान ने कोई जवाब नहीं दिया है।
यह निजी संस्थान छात्रवृत्ति घोटाले की जांच में भी फंसा है। रुड़की के निजी संस्थान ने 2017 में तत्कालीन अपर मुख्य सचिव (समाज कल्याण) से  वर्ष 2015-16 व 2016-17 शैक्षणिक सत्र के लिए पीजीडीएम पाठ्यक्रम के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों की छात्रवृत्ति प्रतिपूर्ति का दावा किया था।

पाठ्यक्रम का शुल्क निर्धारण न होने की वजह से पेच फंसा था, लेकिन बाद में संस्थान के आवेदन पर संस्थान को शुल्क प्रतिपूर्ति के भुगतान का आदेश कर दिया गया। हालांकि, छात्रवृत्ति योजना में घोटाले के आरोपों के बीच शासन ने यह आदेश भी जारी किया था कि कोई भी संस्थान छात्रवृत्ति का भुगतान ऑफलाइन नहीं करेगा। मगर इन आदेशों के विपरीत तत्कालीन अपर सचिव (समाज कल्याण) ने 20 फरवरी 2018 को स्थायी व अस्थाई रूप से रद किए गए आवेदन पत्रों को छात्रवृत्ति के लिए पात्र मानते हुए धनराशि का भुगतान ऑफलाइन करने के आदेश जारी कर दिए। 

आदेश में मुख्यमंत्री कार्यालय स्तर से प्राप्त निर्देशों का हवाला दिया गया। साथ ही पत्र में लिखा कि इसे भविष्य के लिए उदाहरण न समझा जाए, लेकिन इस आदेश पर कुछ महीनों बाद सवाल उठे और मुख्यमंत्री कार्यालय से भी इस पर नोटिस लिया गया तो पूरे एक साल बाद 20 फरवरी 2019 को तत्कालीन अपर मुख्य सचिव की ओर से निजी संस्थान को छात्रवृत्ति की धनराशि से संबंधित सभी आदेश रद कर दिए गए। साथ ही उन्होंने समाज कल्याण विभाग के निदेशक को निजी संस्थान से धनराशि वसूलने के आदेश दिए, लेकिन दो साल से अधिक होने के बावजूद निजी संस्थान से विभाग एक पाई भी वसूल नहीं कर पाया है। अब फिर मामले ने तूल पकड़ा तो विभाग हरकत में आता दिखा है।

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