अल्मोड़ा में जंगलों में लगी आग की चपेट में आकर चार कार्मिकों की मौत हो गई
अल्मोड़ा: अल्मोड़ा के बिनसर अभयारण्य के जंगलों में लगी भीषण आग की चपेट में आकर चार कार्मिकों की असमय मौत हो गई। दर्दनाक हादसे के बाद पूरे अल्मोड़ा में मातम पसरा हुआ है लेकिन सरकार सिस्टम का जरा नजारा देखिए कि घटना के 30 घंटे बाद भी कोई मंत्री पीड़ित परिवारों के आसूं पोछने नहीं पहुंचा। यह पहली मर्तबा नहीं है कि जब ऐसा हुआ हो। पिछले 41 दिनों में अल्मोड़ा जिले में ही जंगल की आग ने तीन घटनाओं में दो दंपतियों और तीन वन कर्मियों समेत नौ लोगों की जान ले ली है। इनमें से किसी भी हादसे के बाद मंत्री को इतना भी वक्त नहीं मिला कि वे पीड़ित परिवारों से जाकर मिलते और उन्हें सांत्वना देकर उनका दर्द बांटते।
ऐसे में अल्मोड़ावासियों के सवाल है क्या किसी मंत्री के विधानसभा में ऐसा दर्दनाक हादसा हुआ होता तो भी वे वहां नहीं जाते। इस बारे में जब विभागीय मंत्री सुबोध उनियाल से बातचीत की गई तो उन्होंने टका सा जवाब दिया कि वन कर्मियों की अंत्येष्टि में विभाग के सबसे बड़े अधिकारी को भेजा था। आपका यह रवैया और बयान हैरान करता है जब वनाग्नि ने अकेले कुमाऊं जिले में इतनी जानें ले ली हों।
कुमाऊं के लोगों का कहना है कि उन परिवारों के बारे में सोचिए, जिन्होंने अपने कमाऊ पूत खो दिए, महिलाओं की मांग सूनी हो गई और बच्चों के सिरों से पिता का साया उठ गया। शायद आप सत्ता की इस ऊंचाई तक पहुंच गए है कि आपको इन लोगों का दर्द महसूस तक नहीं हो रहा है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तक ने इन घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए वन विभाग के अधिकारियों को सतर्क किया लेकिन शायद आपने इन घटनाओं को हर साल की आग की तरह लिया कि बारिश होगी और आग बुझ जाएगी, जंगल जलेंगे, वन संपदा नष्ट होगी तो फिर पेड़-पौधे उग आएंगे लेकिन आप शायद भूल गए कि जिन लोगों की जान चली गई उनकी जिंदगी वापस नहीं आएगी।
सिस्टम से जनता पूछ रही ये सवाल
- क्या ऐसे हादसे मंत्री के विधानसभा क्षेत्र में होते तो जाते या नहीं?
- धधकते जंगल से हो रहे हादसों का हाल जानने कब आएंगे कुमाऊं?
- प्रदेश के सुलगते जंगलों के लिए कौन हैं जिम्मेदार?
- आग बुझाने में जंगलात महकमे की प्लानिंग क्यों हो रही है फेल?
- क्या बारिश के भरोसे है उत्तराखंड का सरकारी सिस्टम?