Haridwar: केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में इन दिनों वेद पाठ की प्राचीन परंपरा को पुनर्जीवित करने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। इसमें ”घनांत” विधि से वेद पाठ करना सिखाया जा रहा है, जो वेदमंत्रों को सुरक्षित रखने और उन्हें विकृत होने से बचाने का प्राचीन तरीका है। यह विधि वेदों के मूल पाठ को बिना किसी मिलावट के सुरक्षित रखने में मदद करती है।
सात दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि प्रो. मनोज मिश्र ने कहा कि वेद भारतीय ज्ञान, संस्कृति और सभ्यता के मूल आधार हैं। उन्होंने कहा कि वेद अपौरुषेय हैं और इन्हें ईश्वर की वाणी भी कहा जाता है। इनमें सृष्टि के सत्य, मानवीय मूल्यों और नैतिकता का गहन विश्लेषण मिलता है। प्रो. मिश्र ने कहा कि स्वामी करपात्री महाराज का सपना था कि वेदों का पाठ परंपरानुसार ही कराया जाए, ताकि उनका मूल स्वरूप बना रहे।
कार्यशाला में भारत के विभिन्न राज्यों मुंबई, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान से 15 वेद विद्वान और छात्र भाग ले रहे हैं। कार्यशाला का उद्देश्य वेदों के वास्तविक स्वरूप में उनका पाठ कराना है, ताकि प्राचीन परंपरा को पुनर्जीवित किया जा सके।