हाथों की लकीरों की ललचाती कहानी राधे श्याम
फिल्मों का जमाना है। और, कोशिश सबकी यही है कि सिनेमाघरों तक दर्शकों को फिर से लेकर आना है। साल 2018 में शुरू हुई फिल्म ‘राधे श्याम’ को लेकर इसे बनाने वालों का दावा भी सिनेमाघरों में एक ऐसा दृश्य श्रव्य प्रभाव पैदा करने का रहा है, जो भारतीय सिनेमा के लिए अब तक अनदेखा हो। तीन सौ से साढ़े तीन सौ करोड़ रुपये के बजट में बनी बताई जा रही फिल्म ‘राधे श्याम’ के यूरोप के एक मशहूर हस्तरेखा विशेषज्ञ की प्रेम कहानी से प्रेरित दिखती है। हालांकि, तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बनाने वालों के देश में ये फिल्म सामुद्रिक शास्त्र की एक ऐसी लोकप्रिय परंपरा को आगे बढ़ाती दिखती है जिसकी तरफ हाल के बरसों में युवा पीढ़ी का ध्यान कम ही गया। प्रभास की ‘बाहुबली’ सीरीज की फिल्मों ने ही ऐसी अखिल भारतीय फिल्मों की तरफ दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया, जो सिर्फ कथ्य से ही नहीं बल्कि अपने प्रस्तुतीकरण से भी चौंकाती हैं। फिल्म ‘राधे श्याम’ दर्शकों को चौंकाने का दमखम रखने वाले सिनेमा की नई कड़ी है, इस फिल्म से अभिनेता प्रभास की भी हिंदीभाषी क्षेत्रों में लोकप्रियता का इम्तिहान होने वाला है।
लोगों का भविष्य बताने वाले कभी बड़े शहरों के व्यस्ततम बाजारों में फुटपाथों पर भी अक्सर दिख जाया करते थे। देश की जीडीपी बढ़ने के साथ जिन लोकप्रिय व्यवसायों का लोक से विलोप होना शुरू हुआ, उनमें ये हस्तरेखा ज्ञान भी शामिल है। फिल्म ‘राधे श्याम’ की कहानी एक ऐसे युवक की कहानी है जिसे हाथ की लकीरों में आने वाला संसार दिखता है। वह एक भारतीय परंपरा का विशिष्ट वाहक है और विदेश में उसका अपना सितारा काफी बुलंद है। फिर उसे मिलती है प्रेरणा। भावों की भी और अनुभूतियों की भी। प्रेरणा उसे आकर्षित करती है। दोनों की जुगलबंदी बनने में समय लगता है। इनके हाथों की लकीरें एक हो पाएंगी या नहीं या फिर दोनों अपनी भाग्य रेखाओं के हिसाब से चलते हुए जीवन के दो अलग अलग ध्रुवों पर निकल जाएंगे, इसी उधेड़बुन में फिल्म ‘राधे श्याम’ की कहानी दर्शकों को बांधने की कोशिश करती चलती है।