इस्राइल-हमास संघर्ष में फंस गया है चीन?
New Delhi: तेज आर्थिक विकास के दम पर चीन दुनिया की बड़ी ताकतों में शुमार हो गया है और अब उसकी महत्वकांक्षा अमेरिका को पछाड़कर खुद को सबसे शक्तिशाली देश बनाने की है, लेकिन इस्राइल-हमास के बीच छिड़ी लड़ाई में चीन फंस गया है और उसकी महाशक्तिशाली देश की छवि भी दांव पर लग गई है। बता दें कि इस साल चीन ने रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच मधयस्थता करने की कोशिश की। साथ ही चीन ने दो दुश्मन देशों सऊदी अरब और ईरान के बीच मध्यस्थता कराकर अपनी ताकत का लोहा मनवाया था। हालांकि इस्राइल हमास के संघर्ष ने चीन की मध्यस्थता कराने की क्षमता की कमियों को उजागर कर दिया है। दरअसल चीन ने इस विवाद पर जो बयान जारी किया है, उसमें चीन ने हमास का नाम ही नहीं लिया और सिर्फ सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील कर खानापूर्ति वाला बयान जारी किया है। जिसे लेकर इस्राइल ने निराशा जताई है।
चीन के बयान से इस्राइल भी निराश
आतंकी संगठन हमास ने बीते शनिवार को इस्राइल में घुसकर वहां निर्दोष लोगों को जिस बेरहमी से मौत के घाट उतारा और सैंकड़ों लोगों को बंधक बनाया, उसे लेकर पूरी दुनिया में नाराजगी है, लेकिन चीन के विदेश मंत्रालय ने जो बयान जारी किया है, उसमें फलस्तीन की आजादी की बात कही और आम नागरिकों पर आतंकी हमले का कोई जिक्र नहीं किया। चीन ने कहा कि सभी पक्षों को संयम से काम लेना चाहिए। चीन दोनों पक्षों का दोस्त है और लोगों की मौत से दुखी है। हालांकि चीन ने हमास का नाम ही नहीं लिया।
चक शूमर ने भी जताई चीन के बयान पर निराशा
अमेरिका के वरिष्ठ सीनेटर चक शूमर ने भी इस्राइल हमास संघर्ष पर चीन के स्टैंड पर निराशा जाहिर की। चक शूमर ने कहा कि चीन ने इस्राइल के लोगों के साथ कोई हमदर्दी नहीं दिखाई। साफ है कि इस्राइल हमास के संघर्ष ने चीन के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी है। विदेश नीति के विशेषज्ञों का कहना है कि चीन खुद को वैश्किक ताकत बताता है, ऐसे में उससे संघर्ष को रोकने के लिए मध्यस्थता या किसी योजना की उम्मीद थी लेकिन चीन ने अपने बयान से निराश किया।
इस्लामी राष्ट्रों का नाराज नहीं करना चाहता चीन
चीन 60 और 70 के दशक में फलस्तीन का समर्थक रहा है और उसने फलस्तीन के उग्रवादी संगठनों का समर्थन भी किया था। हालांकि 1980 के दशक में चीन और इस्राइल के संबंध बेहतर हुए और उसके बाद से चीन के इस्राइल के साथ आर्थिक और तकनीकी संबंध काफी मजबूत हुए हैं। यही वजह है कि इस्राइल ने चीनी विदेश मंत्रालय के बयान पर निराशा जाहिर की है। विदेश नीति के विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ने हाल के सालों में अरब देशों में अपना प्रभाव बढ़ाया है और इसका सबूत चीन ने सऊदी अरब और ईरान के बीच बातचीत कराकर दिया भी है। ऐसे में चीन नहीं चाहता कि वह इस्लामी राष्ट्रों को नाराज करे और यही वजह है कि उसने इस्राइल-हमास संघर्ष में नपा-तुला बयान दिया है और हमास का जिक्र ही नहीं किया है।